वर्षो से जाने कितने सावन कितने पतझड़ देख लिए। फिर भी खड़ा हु मैं मेरी उमर मेरी पहचान नहीं क्योंकि मैं किसी का भावनाओ से बना घर हूँ सिर्फ लकड़ी मिटटी का मकान नहीँ।
- Vivek
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वर्षो से जाने कितने सावन कितने पतझड़ देख लिए। फिर भी खड़ा हु मैं मेरी उमर मेरी पहचान नहीं क्योंकि मैं किसी का भावनाओ से बना घर हूँ सिर्फ लकड़ी मिटटी का मकान नहीँ।